Saturday, July 2, 2016

काम चार घंटे का और वेतन 20- 30- 40- 50 हजार के करीब ऐसा कब तक चलेगा?

7 वाँ वेतन आयोग पर एक नज़र 
23 पर्सेंट वेतन वृद्धि के बाद सवाल उठने चालू हो गये हैं. सवाल है कि सवाल वेतन वृद्धि पर ही क्यों? सवाल कर्मचारी के ‘वर्क -कल्चर’ पर क्यो नहीं? सवाल देश को पीछे ढकेलने वाले ”वर्क-अप्टीट्यूड” पर क्यों नहीं?
बी ग्रेड, सी ग्रेड और डी ग्रेड एम्प्लोयी का उदाहरण लीजिये. काम चार घंटे का होता है.और वेतन 20- 30- 40- 50 हजार के करीब. साइंस के मुताबिक एक स्वस्थ व्यक्ति की ‘वर्किंग-केपेसीटी’ तकरीबन आठ घंटे होती है. लेकिन उपयोग हो रहा है सिर्फ चार घंटे का.
बाकी वक्त आफिस में बैठे बैठे गप्पबाजी में बीतता है. इसके घर वो, उसके घर ये, फलाना की लड़की और अलाना का लड़का. मतलब उसकी वर्क केपेसीटी का चार घंटे का लॉस हुआ या नहीं?
आठ घंटे का ह्यूमन रिसोर्स चार घंटे के बाद कोई अर्निंग तो करता नहीं और बैठे बिठाये मुँगेरीलाल की तरह चीन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देश का सपना देखते रहता है. ऐसी वेतन वृद्धि किस काम की, जो देश का विकास ही नहीं कर पाये? और ऐसे आलसी लोग पालकर देश का कितना विकास होगा?
आप बताओ? चीन और अमेरिका को टक्कर देने का ख्वाब ऐसे मुंगेरी लाल वर्क कल्चर से पा सकते हैं क्या?

7 वाँ वेतन आयोग पर एक नज़र 

तो करना क्या चाहिये???
सिर्फ एक काम करना है. हरेक व्यक्ति में इंटरप्रेन्योरशिप को प्रोत्साहित करना. इसके दो ही तरीके हैं –
‎पहला‬ कदम ये कि सरकारी कर्मचारी के काम का वक्त चार घंटे करे. क्योंकि ऑफिस और प्राईमरी सेक्शन में काम दो तीन घंटे का ही है. बाकी वक्त उसे निजी काम करने की छूट दे. बिना किसी सरकारी रुकावट के.
‎दूसरा‬ उस हिसाब से वेतन कम कर दे. मतलब जिसको आठ घंटे का वेतन 40000 मिलता है. उसे चार घंटे काम कराकर मात्र 20,000 वेतन दे. काम करने वाले कर्मचारी बढ़ाये जिससे ज्यादा लोगो को रोजगार मिल सके.
20000 में उसका काम नहीं चलेगा. लेकिन जिस ऑफिस में चार घंटे का ही काम हो, उस ऑफिस में आठ घंटे फ़ालतू बैठाकर सरकार – देश और खुद उस व्यक्ति का ज्यादा नुकसान है या 20000 अधिक वेतन देने में?
लोगों की वर्किंग केपेसीटी का जो वक्त फ़ालतू पान सिगरेट मसाला और फलाना की बीवी, चिलाना की बहन, गप्पबाजी में जाता है, उसका 20000 एक्स्ट्रा पे करके आखिर सरकार को क्या मिलता? देश का कौन सा विकास होता है?
अगर यही उससे कड़ाई से सिर्फ ‘चार घंटे’ का काम लिया जाये. और बाकी वक्त में उसे निजी काम करने, उद्योग करने, दुकान करने की छूट मिलेगी तो वो करेगा. क्योंकि बीस हजार में तो उसका पेट भरने से रहा. तो वो आलसी बनने के बजाय अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करेगा. कोई ना कोई बिजनेस करेगा. 30000-20000- 10000 हरेक माह तो कमा ही लेगा. इसका टैक्स वो सरकार को भरेगा. उसकी बुद्धि, श्रम,ताकत और ऊर्जा का सही उपयोग होगा. देश को भी योगदान होगा.
साफ़ सुथरी बात ये कि चीन और अमेरिका ताकतवर इसलिये नहीं हैं कि वहाँ सरकारी वेतन अच्छा है. बल्कि इसलिये हैं कि वहां सरकारी ऑफिस में उतने ही लोग और उतने ही घंटे होते हैं, जितने का काम होता. बाकी के वक्त में हरेक व्यक्ति अपनी मेधा-ऊर्जा-ताकत का इस्तेमाल कमाई करने में लगाता है. और किसी भी तरह का काम करने में उनको शर्म महसूस नहीं होती.
सच तो यह है कि इसी से अमेरिका-चीन, फ्रान्स का विकास हुआ है और वो ताकतवर बने. और एक हम हैं. आलसी, मुंगेरीलाल के सपनों की बदौलत विश्वशक्ति बनना चाहते हैं!
Article Source :- http://www.makingindia.co/2016/07/01/vetan-vriddhi-work-culture/

Sunday, May 22, 2016

मोदी की मेक इन इंडिया योजना ने छीना चीन का चैन

मोदी की मेक इन इंडिया योजना ने छीन लिया चीन का चैन बीजिंग। चीन के मीडिया ने आगाह किया कि नए निवेश गंतव्य के रूप में भारत को मिल रही तरजीह ने चीन की दुखती नस को छुआ है क्योंकि तेजी से बढ़ता भारतीय उपभोक्ता बाजार चीन की चमक को छीन सकता है। ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनी एप्‍पल के मुख्य कार्यकारी टिम कुक इस समय भारत की यात्रा पर हैं ताकि वहां कंपनी के खुद के स्टोर खोलने के प्रस्ताव पर जोर दे सकें और भारत के तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार में उपस्थिति बढ़ाई जा सके।
मोदी की मेक इन इंडिया योजना

कुक की इस बहुप्रचारित भारत यात्रा से पहले एप्‍पल की आपूर्ति करने वाली फाक्सकॉन जैसी प्रमुख कंपनियों ने भारत में अपने कारोबार के विस्तार की योजनाओं की घोषणा की है। आलेख का शीर्षक कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहा है भारत लेकिन चीनी फर्मों के लिए भी बड़े बाजार की पेशकश है। इसमें कहा गया है, इस कहानी ने एक बार फिर चीन में अनेक लोगों की दुखती रग को छुआ है। मोदी सरकार द्वारा 2014 में मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत से ही विनिर्माण गतिविधियों के चीन से भारत जाने को लेकर खूब चर्चा हो रही है।
इसके अनुसार, अब यह लगता है कि भारत का तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार चीन की चमक भी छीन रहा है। इसमें कहा गया है कि भारत के सुधरते औद्योगिक बुनियादी ढांचे, तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार, सस्ते श्रम व विनिर्माण क्षेत्र के लिए अन्य फायदों को ध्यान में रखते हुए वैश्विक कंपनियां भारत को लगातार आकर्षक बनते गंतव्य के रूप में देख सकती हैं।