भारत में होंगे अगले दौर के नए इनोवेशन
देश को डिजिटल शक्ति से संपन्न और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम उम्मीद जगाता है। यही इसका घोषित उद्देश्य भी है। जाहिर है हमने सरकार का चेहरा व लोगों की जिंदगी बदलने की टेक्नोलॉजी की क्षमता को पहचान लिया है।
Rajeev Chandershekhar |
कई लोगों के लिए डिजिटल इंडिया का मतलब टेक्नोलॉजी का कोई आकर्षक मंच है। समाज के ऊपर के तबकों के लिए इसका अर्थ फेसबुक व ट्विटर हो सकता है- पूरा देश स्मार्टफोन से लगा बैठा है, कुछ ऐसी छवि उनके दिमाग में आती है। किंतु डिजिटल इंडिया का संबंध शासन के मूल आधार को बदलकर रख देेने से है। इसका नागरिक व सरकार और सरकार से सरकार के रिश्तों व कामकाजी व्यवहार में सीधा सकारात्मक असर होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे इनोवेशन आधारित अर्थव्यवस्था विकसित होगी। उद्योग जगत का तो मानना है कि अगले स्तर के इनोवेशन और आविष्कार भारत में ही होंगे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पिछले 25 वर्षों के आर्थिक उदारीकरण ने संपत्ति और समृद्धि निर्मित की है। इसमें भी कोई विवाद नहीं है कि इससे गरीबों पर पैसा खर्च करने की सरकार की क्षमता भी बढ़ी है। परंतु वास्तविकता यह है कि सरकार से मदद हासिल करने के लिए करोड़ों भारतीय अब भी बहुत ही कमजोर और भ्रष्ट व्यवस्था पर निर्भर हैं। इसके कारण उन्हें दुश्वारियों से बाहर लाकर उनकी पहुंच गुणवत्तापूर्ण, बेहतर जिंदगी तक बनाने की बजाय निराशा का दौर ही लंबा हो रहा है। इस पृष्ठ भूमि में डिजिटल इंडिया की पहली प्राथमिकता टेक्नोलॉजी का उपयोग कर बिचौलियों, दलालों या राजनीतिक मध्यस्थों के बिना सरकार को लोगों तक पहुंचाना है। इसी तरह आर्थिक मदद के कार्यक्रमों को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े बिना लोगों तक पहुंचाना भी इसका मकसद है। व्यापक स्तर पर देखें तो टेक्नोलॉजी से सारे ही नागरिक मंजूरी, सेवाओं या किसी भी अन्य जरूरत (जैसे जन्म-मत्यु प्रमाण-पत्र, राशन कार्ड आदि) के लिए सरकार के साथ व्यवहार कर सकते हैं। वह भी कुख्यात लालफीताशाही की परेशानियों या दलालों का सामना किए बिना।
पिछले दस वर्षों में यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए घोटालों के कारण सरकारों की सफाई राष्ट्रीय संकल्प हो गया है। जैसेकि अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ सरकार की खर्च करने की क्षमता भी बढ़ी है। इस साल की ही बात करें तो सरकार 13 लाख करोड़ रुपए का उपयोग कार्यक्रमों और व्यावसायिक ठेकों पर करने वाली है। सार्वजनिक संपत्ति या धन को सरकार जिस तरह उपयोग में लाती है, उसमें बहुत कम पारदर्शिता है। यहीं पर डिजिटल इंडिया का दूसरा लक्ष्य सामने आता है- सरकार को ऑनलाइन बनाना ताकि सार्वजिनिक धन से संबंधित सारे फैसले पारदर्शी रखकर उनकी जानकारी लोगों को हो।
ऑनलाइन नीलामी से कितना बड़ा फायदा हो सकता है यह हम टेलीकॉम स्पेक्ट्रम व कोयले की नीलामी में देख ही चुके हैं, जिनसे सरकार को 3 लाख करोड़ रुपए मिले हैं। यह ‘ऑनलाइन सरकार’ राजनीतिक भ्रष्टाचार के सबसे बड़े स्रोत को खत्म कर देती है और वह स्रोत है सरकारी ठेके और सौदें। जैसा की हाल की घटनाअों ने दिखाया है कि कुछ कंपनियों ने सरकारी सूचना तक पहुंचने की अपनी ताकत का उपयोग कर सरकारी नीतियों को प्रभावित किया है और इस तरह फैसले कुछ थोड़े से लोगों के पक्ष में हुए। कुछ कॉर्पोरेट और राजनीतिक-ब्यूरोक्रेटिक हित लंबे समय तक सिर्फ इसलिए फलते-फूलते रहे, क्योंकि सार्वजनिक स्तर पर जानकारी उपलब्ध नहीं थी और लोग अज्ञान के अंधकार में काम करते रहे। डिजिटल इंडिया नीति निर्धारण को न सिर्फ खुले में ले आएगा, बल्कि वह जनता के क्षेत्र में ले आएगा यानी जनता उसका फैसला करेगी। इसके साथ ही कॉर्पोरेट और निवेशकों के लिए राजनीतिक तत्वों से संबंध रखना अप्रासंगिक हो जाएगा। डिजिटल इंडिया के फायदे वास्तविक हो सकते हैं और यह भारत का भविष्य बदल सकते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने और टेक्नोलॉजी में माहिर युवा आबादी के साथ भारत वैश्विक नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परंतु इसके लिए सबसे पहले ऐसा ढांचा खड़ा करना होगा कि निवेश तथा उद्यमियों को इनोवेशन और भारत के निजी सेक्टर में भागीदारी का मौका मिल सके। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट स्वतंत्रता पर दूरगामी फैसला देकर सूचना तकनीक अधिनियम 2000 की धारा 66ए को खारिज कर दिया। इसके लिए मैंने जनवरी 2013 में जनहित याचिका दायर की थी। इस फैसले के साथ भारत ने डिजिटल रूपांतरण की दिशा में बड़ी छलांग लगा दी।
सब तक इंटरनेट की पहुंच के लक्ष्य पर चलने के साथ सरकार को इस पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वह इंटरनेट आधारित सेवाओं के अपने 1.20 अरब ग्राहकों को सुरक्षा देने के लिए कैसी नीतियां अपनाएगी। नेट न्यूट्रलिटी की तात्कालिक चुनौती से पहले निपटना होगा। विविधतापूर्ण उपभोक्ता जरूरतों और सबतक नेट पहुंचाने के लक्ष्य को ध्यान में रखना होगा। डिजिटल इंडिया की सफलता की कुंजी इसमें है कि सरकार इनोवेशन को प्रोत्साहन देने वाला तकनीकी माहौल निर्मित करे। अगले दशक में तकनीकी इनोवेशन रोजमर्रा के जीवन में इंटरनेट के उपयोग पर केंद्रित रहेगा। इसे ही इंटरनेट ऑफ थिंग्स कहा जाता है। मशीन से मशीन के बीच इंटरनेट के प्रति मौजूदा नीति की दिशा विभाजित है। इस विभाजन को और स्पष्ट करते हुए तकनीकी मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक व सूचना तकनीक मंत्रालय दोनों अपने स्वतंत्र मसौदे तैयार कर रहे हैं। इसकी बजाय एक व्यापक नीतिगत ढांचे की जरूरत है।
शिक्षा, उद्योग और टेक्निकल समुदाय के विशेषज्ञों के मार्फत नीति तैयार कर इनोवेशन को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखना चाहिए। डिजिटल इंडिया अपने मूल दृष्टिकोण में सरकार व नागरिकों की जिंदगी को बदलने में टेक्नोलॉजी को प्रमुख जरिया मानता है। यह अपने आप में हमारे देश के लिए सही दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। जैसा कि प्रत्येक विज़न और सराहनीय उद्देश्य में होता है, क्रियान्वयन संबंधी ब्योरे ही उस विचार को बना या बिगाड़ सकते हैं। सरकार के पास अगले 50 माह का समय है कि वह डिजिटल इंडिया को ड्राइंगबोर्ड से उठाकर लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना दे।
>ऑनलाइन व्यवस्था से कितना बड़ा फायदा हो सकता है यह हम टेलीकॉम स्पेक्ट्रम व कोयले की नीलामी देख ही चुके हैं, जिनसे सरकार को 3 लाख करोड़ रुपए मिले हैं।
>सरकार इनोवेशन को प्रोत्साहन देने वाला तकनीकी माहौल निर्मित करे। अगले दशक में तकनीकी इनोवेशन रोजमर्रा के जीवन में इंटरनेट के उपयोग पर केंद्रित रहेगा।
Source :- http://www.bhaskar.com
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